मैं,, चाँद और तुम
जब से तुमने बताया है,,,
मैं रोज इस चाँद को निहारती हूं घंटों तक
और करती हूं सब अपनी बातें चाँद से
क्या कभी इसने मेरा संदेश तुम तक भेजा है
ये चाँद तो तुम्हारे शहर में भी दिखता है ना साहिब
क्या...
मैं रोज इस चाँद को निहारती हूं घंटों तक
और करती हूं सब अपनी बातें चाँद से
क्या कभी इसने मेरा संदेश तुम तक भेजा है
ये चाँद तो तुम्हारे शहर में भी दिखता है ना साहिब
क्या...