...

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रिश्ते।।
कच्चे धागे से होते हैं रिश्ते,
जो गांठ की तरह बांधने पड़ते हैं।
यूं बीत जाते हैं साल इन्हें बनाने में
और निकल जाती है जान इन्हें निभाने में,
जब एक रिश्ता जुड़ता है तो फल भी मिलता है,
पर पेड़ पर पत्थर भी लगते हैं।
कुछ यादें तो होती है ऐसी रिश्तो की जो भुलाए नहीं भुलाई जाती,
और कुछ यादें याद नहीं आती,
यह बंधन रिश्तों के मैं इसमें उलझ गई,
और अपनी जिंदगी में सिमट गई,
अगर रिश्ते हैं अनमोल तो,
क्यों रिश्तेदार तोलते हैं मोल?
कभी सास का,
तो कभी नंद से रिश्ता बनाते-बनाते,
मैं खुद से रिश्ता रखना भूल गई।
क्या सच में रिश्ता निभाना होता है,
बोझ या लोगों की यह है सोच।।

© Dolphin 🐬 (Prachi Goyal)