प्रेम या कामुकता
बेटी! तू ही जल जायेगी, आग छिपी गलियारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।
जिसके पीछे पागल तू वह,
प्यासा है तेरे तन का।
किया समर्पित क्यों सब उसपर,
मेल नहीं था जो मन का।।
जिस दिन मन भर जाना उसका, गिन लेगा बेकारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है,...
प्रेम नहीं बस कामुकता है, इन झूठे बाजारों में।।
जिसके पीछे पागल तू वह,
प्यासा है तेरे तन का।
किया समर्पित क्यों सब उसपर,
मेल नहीं था जो मन का।।
जिस दिन मन भर जाना उसका, गिन लेगा बेकारों में।
प्रेम नहीं बस कामुकता है,...