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प्रकृति की लीला है न्यारी

किसी बीज से फलों का अंबार लगाती धरती मां हमारी,
तो किसी से फूलों से भर जाती फुलवारी,
प्रकृति की लीला है न्यारी।

कभी सूखा मैदान तो कभी धानी चुनर ओढ़ लेती धरती माँ हमारी,
प्रकृति की लीला है न्यारी।

प्रकृति की लीला से अनेक रूप लेता है वारि,
नदी में मीठा तो सागर में खारा,
वारि ऐसा है गुणधारी,
प्रकृति की लीला है न्यारी।

कोई खाता अन्न और फल,
तो कोई है मांसाहारी,
मानव हो या जीव सभी प्रकृति के आभारी,
प्रकृति की लीला है न्यारी।

© kalyani