...

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सिलसिला
सिलसिला यूंही चलता रहता तो अच्छा होता,
उससे रोज़ मिलता रहता तो अच्छा होता,
बारिश की बूंदों में बनी ये दोस्ती,
बूंद से सागर होती तो अच्छा होता,
एक दिन की टकरार का ये अंजाम न होता,
और आज में उससे यूं जुदा ना होता,
भूल हमारी थी जो गिला की
और खता भी ना मानी,
समझ न सका उसे जब उसने विदा ली,
प्यार हो गया था उसे भी, हमें भी,
पर उसे ना समझने की खता की,
काश वो पल लौट आए
बस यही चाहता हूं,
उसके प्यार की बारिश में
फिर से भीगना चाहता हूं।।