छुट्टियाँ
छुट्टियाँ
मन से खिलवाड़ हो गई है
रात सोती भी देर से है
सुबहे बिस्तर से लाड़ हो गई है
दिन शाम तक पकेगा
और रात भाड़ हो गई है
धूप तेज़ आज भी है
बस घर से थोड़ी आड़ हो गई है
काम को ओट नहीं मिलती
जरूरते उग के ताड़ हो गई है
शिखर की मौज ढूंढता हूँ मैं दिन भर
छुट्टियाँ पहाड़ हो गई है
© Ninad
मन से खिलवाड़ हो गई है
रात सोती भी देर से है
सुबहे बिस्तर से लाड़ हो गई है
दिन शाम तक पकेगा
और रात भाड़ हो गई है
धूप तेज़ आज भी है
बस घर से थोड़ी आड़ हो गई है
काम को ओट नहीं मिलती
जरूरते उग के ताड़ हो गई है
शिखर की मौज ढूंढता हूँ मैं दिन भर
छुट्टियाँ पहाड़ हो गई है
© Ninad