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कर्म
सूरज क्यों निकलता है
सोचा है कभी
रात क्यों गहराती है
चांदनी के आगोश तले
सुनहली भोर फिर
मुस्कुराती है
सोचा है कभी
यहां सब हरपल घट रहा है
और जो कुछ हो रहा है
सब चलयामान है
बस कर्म की गति
ना बंधी है
ना थमी है
सोचा है कभी
कर्म भूमि में बीजें जो
अंकुर
उनका ही होता है निरुपण
सोचा है कभी,,
© k.s
सोचा है कभी
रात क्यों गहराती है
चांदनी के आगोश तले
सुनहली भोर फिर
मुस्कुराती है
सोचा है कभी
यहां सब हरपल घट रहा है
और जो कुछ हो रहा है
सब चलयामान है
बस कर्म की गति
ना बंधी है
ना थमी है
सोचा है कभी
कर्म भूमि में बीजें जो
अंकुर
उनका ही होता है निरुपण
सोचा है कभी,,
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