...

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ज़िन्दगी का सफ़र
ज़िन्दगी के सफ़र में कितना फासला तय कर आया हूँ मैं,
चमन सुर्ख़ गुलज़ार की महकती फ़िज़ां से गुज़र आया हूँ मैं,

शबनमी राह का वो अंदाज़-ए-अदा था कितना दिलकश,
खुशकिस्मत हूँ इस जज़्बा-ए-नूर तर्रनुम लम्हे से हुआ रूबरू,

उन चंद मुकद्दस लम्हों में छाया था उन्स ख़ुमार एक सुरूर,
बेशक अब कोहरे की चादर लपेटे हुए हूँ यूँ एक तअस्सुर में,

उन लम्हों की जुस्तजू को किया धा सजदा जैसे एक दैर,
अरविंद क्यूँ‌ आज इस हस्सास लम्हे का ख़्याल आ गया दफअतन I

-✍️ Arvind Akv