।। चाहते।।
है खुद मे तन्हा तन्हा हम।
औरों कि खुशियाँ क्या परखे।
जब अपनो ने समझा ही नहीं,
तो गैरों से उम्मीदें क्या रखे।
जब नफरत भी डंग से मिली नहीं,
तो प्यार कि चाहत क्या रखे।
कभी पन्हा हमको मिली नहीं,
मंजिलों कि चाहत क्या रखे।
आँखे तो कभी सुखी ही नहीं,
हसने कि चाहत क्या रखे।
पर फिर भी है दिल मे एक दुआ,
जिन्होनो दूखाया इस दिल को,
खुदा उनके दिल को भी भला रखे।
© sumit123
औरों कि खुशियाँ क्या परखे।
जब अपनो ने समझा ही नहीं,
तो गैरों से उम्मीदें क्या रखे।
जब नफरत भी डंग से मिली नहीं,
तो प्यार कि चाहत क्या रखे।
कभी पन्हा हमको मिली नहीं,
मंजिलों कि चाहत क्या रखे।
आँखे तो कभी सुखी ही नहीं,
हसने कि चाहत क्या रखे।
पर फिर भी है दिल मे एक दुआ,
जिन्होनो दूखाया इस दिल को,
खुदा उनके दिल को भी भला रखे।
© sumit123
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