...

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चार दिन कि जिंदगी
क्या पता क्यूँ नाराज है खुदा
सुनना उसने अब बंद कर दिया!
जिनके हाथ थे मेहनत से कटे
उन्हें खाली ही रखा न दामन
भर दिया!
चार दिन की जिंदगी चार ही दिन
बन के रह गयी,
जीना तो क्या था उन्हें जिन्हें
न रहने के लिए घर,न तन ढकने
के लिए दिया!
खाना भी मिल जाता है उन्हें
कभी कभी भीख की तरह,
इस चार दिन की जिंदगी मे बस
यही तो मिला!
खुदा की इबादत करते करते
थक जाते हैं आत्मा और शरीर,
मगर फिर भी मायूस सा मन रहता
है, इस चार दिन की जिंदगी में
ये चार दिन ही काटना मुश्किल
है!
चार दिन कहते हुए एक अरसा
बीत जाता है,
जो ढोता है इस चार दिन की
गठरी को,
वही समझ पता है कि मरने से
कठिन तो जीना है!
रोने से कठिन हँसना है!
कहने से मुश्किल सुनना है!
ये चार दिन कि जिंदगी बहुत
दर्द देती है,
किसी के लिए ये जहर बन के
रहती है!
ये सब शायद अब खुदा नहीं सुनता,
लाचार मायूस कि फरियाद अब वो नहीं
सुनता!
इसलिए कहना पड़ता है जिंदगी
के ये चार दिन कट जाये तो अच्छा है!



© sangeeta ki diary