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Kalki aur kali पुरूष
आज कल के लोग प्यार भी चालाकीयों से करते है किसी के साथ जीते और किसे पे मरा
करते है।
जहा प्यार हो वहां स्वार्थ कैसा।
भावनाओ के बगैर शब्दों का भावार्थ कैसा ।
जो पल में खुदगर्ज में हो जाए वो हमारा पार्थ कैसा।
देखो आजकल प्यार का सौदा होने लगा है।
किसको देना कितना देना प्यार का ओहदा होने लगा है।
औरों की बात ही क्या करे मेरे करीबियों ने मुझसे प्यार का परपंच करके मुझको ठगा है।
आज के जमाने में मां 🙏🙏🙏🙏ही निस्वार्थ प्रेम करती है उन्हे छोड़कर ना जाने क्यों ये दुनिया निस्वार्थ प्रेम करने से डरती है।
फिर से बोल रहा हो जरा बच के रहना यह प्यार का सौदा होने लगा है जज्बातों को नहीं
मूर्तियों को पूजा जाने लगा।
आज कल इस दुनिया के हाव भाव इतनी तेजी
से रहा है बदल की इसे देख समय भी आश्चर्य है इनके हाव भाव को बदलते देख ।
समय खुद को मान बैठा निस्कीर्य है।
देखो इस कलयुग में हर तरफ मचा कैसा ये
जज्बातों का विध्वंस है।
यहां हर कोई मानवता का मुखौटा पहने सौकिनी और कंस है।
जरा गौर से देखो हम सब में पनप रहा कलीपुरूष का ये अंश है।
मत भूलना खुद को हम भी कल्कि के ही वंश है ।
खुद के भीतर के कल्कि को जगाओ अपने अंदर पनप रहा इस काली पुरुष को वजूद से मिटाओ ।
अरे क्या सोच रहे हो काली पुरुष को मिटाने क्या Kalki ka अलग se अवतार होगा?
हम सब ही तो कल्कि के अवतार हैं।
हमारा मन कल्कि का हथियार है ।
इस हथियार को प्रेम से धारदार कर ले।
इस धार दार हथियार से काली पुरुष पे प्रहार कर ले ।
याद रखना कल्कि का हथियार तभी निरस्त होगा जब हमारे मन से प्रेम-भक्ति का अस्त होगा। इन निरस्त हथियारों से काली पुरुष फिर पस्त कैसे होगा ।
प्रेम और भक्ति से मन रूपी हथियार को धार दार बनाए रखना। कल्कि के हाथों को इन धारदार हथियारों से सजाए रखना।तेरे भीतर ही कल्कि और काली पुरुष का रण होगा।
तेरी चेतना ही कालिया नाग का फन होगा।
इतिहास फिर से खुद को दोहराएगा
ह्रदय फिर से झंकृत हो जायेगा जब इस
कालिया नाग के फन को खोलकर माधव कल्कि बनके नृत्य करने आएगा।
जब मन निस्तब्ध होगा
तब समझ जाओ कल्कि के द्वारा काली पुरुष का वध होगा इसे देख
हर इंद्रियां स्तब्ध होगा।
जब तेरे आंखों से अश्रू के रूप में काली पुरुष का रक्त बहेगा
कल्कि के जय घोष से शरीर‌ का रोम रोम गूंज उठेगा।






© aman 8111819@