...

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गुरूत्वाकर्षण

चांद घूमता रहता है
धरती के इर्द गिर्द
बिना रुके
अनवरत
ताकि महसूस कर सके
उसका सामीप्य
निरंतर..

धरती हर बार
छूने की कोशिश करती है
चांद को
हर ज्वार भाटे के साथ
ताकि उसे और करीब से देख सके
अपनी समंदर सी गहरी आंखों में
सहेज सके
उसका अक्स..

दोनों बंधे हैं
एक दूसरे के
गुरूत्वाकर्षण से..
इस जुड़ाव से ही
संभव है
वर्तमान स्वरूप का अस्तित्व..

प्रेम,
कारण भी है
परिणाम भी...




© आद्या