...

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शहर कलकत्ता
बारिश से भीगे रास्ते,
उस पर चमकते पीले बल्ब की रोशनी
भीगी–भीगी सी महक
आती जाती पीली टैक्सी
पीछे बजता रविन्द्र गीत
सुकून कहीं हुगली की छोर
उस पर तैरता चप्पू एक ओर
हावड़ा का नज़ारा ।
मां दुर्गा का घर
डोकरा की कला
बंगाल का संगीत
वहां का नृत्य
भाषा में घुली मिश्री अनमोल
ये है शहर कलकत्ता की डोर।

कुर्ते–धोती वाली पोशाक
सूती–तांत की दुकान
खुले बाल और कजरारे नैन
उस पर से काली बिंदी का मेल ।
ये है शहर कलकत्ता
मेरे अंतर्मन के बेहद समीप।
जाना मेरा,
अबतक इस शहर में हुआ नहीं ।
© preet