...

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"सच का रूप"
दुख और सुख से बहुत ऊपर हूं मैं,
आसमान का नहीं जमीन का टुकड़ा हूं मैं,
तुम मुझे क्या जानोगे तुमसे तो बिल्कुल जुदा हूं मैं।
पर उड़ती हवाओं को भी जमीन पर आना पड़ता है सच को अपनाना पड़ता है।
सुंदर गाना तो नहीं पर गाने का मुखड़ा हूं मैं,
आंखों में आंसू ला दे ऐसा दुखड़ा हूं मैं,
इमानदारी करके भी कहलाने वाला काफिर हूं मैं,
प्यार चाहने वाला एक मुसाफिर हूं मैं।