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जिंदगी कुछ युहि
जब आया हु , कोरा कागज था।
लिखने का ईतना हि पागलपन था सोच, समाज कर लिखना था।
अब जितना भि कोशिश करु, जो लिखा , उसे मिटा नहि पा रहा हु।
फिर रोने से क्या फायदा।
पिर भि वहि लिखाई छली आ रहि है।
चरित्र , इन्सानो का गलतिया है।
© All Rights Reserved
लिखने का ईतना हि पागलपन था सोच, समाज कर लिखना था।
अब जितना भि कोशिश करु, जो लिखा , उसे मिटा नहि पा रहा हु।
फिर रोने से क्या फायदा।
पिर भि वहि लिखाई छली आ रहि है।
चरित्र , इन्सानो का गलतिया है।
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