...

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सामयिक ग़ज़ल
कुछ सामयिक अशआर ~😊

आ गया फिर चुनाव का मौसम।
फ़िर वही भाव-ताव का मौसम।

किसके हिस्से में कितनी बारिश है,
बन रहा है दबाव का मौसम।

सब लगे दौड़धूप करने में,
छोड़कर अपनी छाँव का मौसम।

फ़िर से अपनों की याद आने लगी,
बढ़ रहा है लगाव का मौसम।

देखो आते हैं किसके अच्छे दिन,
किसका है चलचलाव का मौसम।

अब कोई बस्ती है अछूत नहीं,
अब है सबसे जुड़ाव का मौसम।

न्यूज़ चैनेल लगे लड़ाने में,
हर बखत काँव काँव का मौसम।

अब तो हर दर पे सर झुकाये हैं,
अब नहीं हैं दुराव का मौसम।
© इन्दु