...

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लोग .....
इतने बेताब , इतने बेकारार क्यों हैं ?
लोग हद से ज़्यादा होशियार क्यों हैं ?
मुंह पे तो सभी हैं दोस्त लेकिन,
पीठ पीछे दुश्मन हज़ार क्यों हैं ?
हर चेहरे पर एक मुखौटा है यारों ,
लोग ज़हर में डूबे किरदार क्यों हैं ?
सबको सबकी ख़बर चाहिए ,
हमे समझ नहीं आता ....
लोग चलते फिरते अख़बार क्यों हैं ?