...

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मुक्ति
कुछ लोग स्वभाव से बुद्ध होते है
नहीं उनमें वैराग नहीं पनपता
दूसरों के दु:ख से
वो महरूम रह जाते हैं
अपने जीवन में हर सुख से
वो सिद्ध हो जाते हैं
अपने जिंदगी के सीलन को
अपने कर्म की आंच से सेकते सेकते
ना जुबां खोलते हैं
ना कुछ बोलते हैं
बस मुस्कुराहटों में
हर दिन गमों को तोलते हैं
ऐसे हर बुद्ध को ललकारना चाहती हूं मैं
उसके कर्म की अंगीठी को
हक के ईंधन से भड़काना चाहती हूं मैं
हक है तुम्हें भी खुल कर कहकहे लगाने का
आंसुओं के सैलाब से दुनियां को डुबोने का
कब तक संतोष की चादर से तन ढकोगे तुम
ईश्वर की मर्जी को नतमस्त सहोगे तुम
उठो की
जी भर कर शिकायतें करो तुम
हक के लिए अपने ईश्वर से लड़ो तुम
कर के सिर्फ, ईश्वर का धन्यवाद
मत रुको तुम
अपने हिस्से का स्वर्ग इंद्र से छीन लाओ तुम
खुद को बुद्धत्व से मुक्त करो तुम.
✍️✍️✍️©रंजना श्रीवास्तव
© Ranjana Shrivastava