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बेटी होना एक संघर्ष
बेटियों को कहां है कुछ कहने का हक
कहां जाता है बचपन से ,बेटी है तू मुंह बंद रख

बड़ा होना भी बेटी के लिए एक गुनाह बन जाता है
क्या हो रहा है यह समझ नहीं आता है

सहन कर ले बेटी एक वक्त पर सब ठीक हो जाएगा
दुख सहेगी तभी तो सुख का वक्त आएगा

दुनिया में यह कोई ना बता पाया
किस बेटी के जीवन में दुख के बाद सुख आया


होती होगी कुछ खुशनसीब मुझे इंकार नहीं
बदनसीबों को भी कहां जिंदगी से प्यार नहीं


सह लुंगी तो बच जाएगी इज्जत माता पिता की भी
घर ना टूटेगा , बसी रहेगी अपनी झूठी दुनिया भी

कलेश की ज्वाला को दिल में दबाईं बैठी होती है
चेहरे पर झूठी मुस्कान लिए ,बहुत कुछ छिपाए बैठी होती है

अच्छे वक्त का इंतजार करती है पर वक्त कभी आता नहीं
खुशहाल जिंदगी का सपना है कि कभी दिल से जाता नहीं

अजीब कशमकश बनकर रह जाती है जिंदगी सारी
दिल के किसी कोने में बसी है बचपन की यादें प्यारी

सोचती है अंत में, मैं यह क्या कर बैठी ?
जो मेरे मरने की दुआ कर रहे, उनके लिए जिंदगी तबाह कर बैठी

मर जाती है दिल में सपने दबाये एक दिन
अब कौन संभालेगा पूरा घर उसके बिन ?

मरने के बाद अब वह अच्छी लगती है
बातें उसकी अब सारी सच्ची लगती है

बेटी की है दुनिया में एक यही कहानी
आंसू कहाँ उसके ? लगता है सबको पानी


बेटी होना ही खुद में एक संघर्ष है
मेरी इस कविता का एक यही निष्कर्ष है

धन्यवाद!

© Munni Joshi