...

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तेरा होने नहीं देती
मैं लड़का हूं यही बातें मुझे रोने नहीं देती,
ये दुनिया है बड़ी ज़ालिम तेरा होने नहीं देती।

पूरे दिन मैं पढ़ता हूं किताबों के महल में पर,
वो घर की याद ही है रात को सोने नहीं देती।

करना काम चाहूं मैं भले हूं मैं बहुत छोटा,
मेरी मां प्यार करती है मुझे ढोने नहीं देती।

मैं नफ़रत के शहर में प्यार का पौधा उगा देता,
मल्लिका है बड़ी ज़ालिम मुझे बोने नहीं देती।

उसकी झील सी आंखों में मन करता है खो जाऊं,
मगर मुस्कान उसकी है मुझे खोने नहीं देती ।

मैं चाहूं देश की जनता चले कंधा मिलाकर के ,
वो गंदी राजनीति है जो ये होने नहीं देती।।


अरुण