...

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थोड़ा सा मर कर आया हूँ...
सफ़र अपने हालातों का करके आया हूँ
मैं आज फ़िर थोड़ा सा मर कर आया हूँ।

उतरे थे मोहब्बत के दरिया में ख़ुशी ख़ुशी
आँसुओ के सैलाब से मग़र तर के आया हूँ।

जीना चाहता था मैं भी ज़िंदादिली से ज़िन्दगी
ख़ुद को तबाह इश्क़ में मग़र करके आया हूँ।

गये थे मुकम्मल करने ख्वाहिशे, सपनें
बेक़रारी, बेरुख़ी दामन में मग़र भर कर लाया हूँ।

जितनी उम्मीद से था लबरेज़ मेरा हौंसला
उल्फत में खाली ख़ुद को मैं करके लाया हूँ।

© Gaurav J "वैरागी"

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