...

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राहत मिलता था मुझे।
रस्ते में वो इत्तफ़ाक़ से मिल गया था मुझे।
देखता था मैं उसे और वो देखता था मुझे।

उसकी आंखें है जन्नत मेरे लिऐ कयामत!
एक झलक पा कर राहत मिलता था मुझे।

मेरे जिस्म के अंदर कमियां ढूंढता था वो!
ग़लत समझ कर उसने खो दिया था मुझे।

बिखर चुका हू मैं "ए रब" क्यों समेटता है।
पुराना फटा कपड़ा हूं क्यों सिया था मुझे।

मेरी जिंदगी का लम्हा तेरे नजर का कसूर है।
नज़र मिलाने का हौसला रब ने दिया था मुझे।
© महज़