...

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मेरी तन्हाई
मेरी तन्हाई

थीं मेरे साथ,

मेरे जिक्र के पन्नो में,

हररोज आती थीं,

कुछ बातें दिल की गुनगुनाती थीं,

कुछ हद से ज्यादा चोट दिखाती थीं,

होके बेखबर दीवाना होगया उसका,

की तड़पती हैं धड़कन बिन रोये,

चलती हैं फ़िज़ा बिन सोये,

कुछ थीं अनकही सी बात,

जिसकी मरम्मत ना हुईं,

खुदकी हीं परछाई में,

तलाश ना हुईं.......








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