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एक सलाह, नेक सलाह!
बेवजह परेशान हैं जो वो,
खुद को पत्नी पीड़ित कहते हैं।
जो खुद जीना चाहते पर,
अपनी पत्नी संग नही जीते है।।

वो खुल कर कह पाते नही,
कि तू ही तो मेरी वंदनीय है।
तेरे बिन जीना तो छोड़ मेरा,
मर जाना भी जग निंदनीय है।।

यह सोम मंगल बुध बेफे,
रहे शुक्र या शनिवार के दिन।
पिसती रहती है सदा ही,
हर तीज और त्योहार के दिन।।

मेरे संग ले तू भी छुट्टी,
जब-जब आ जाता इतवार जी।
उस दिन घरेलू काम छोड़,
तूम बन जाना मेरी सरकार जी।।

खाना बनाना और मांजना,
छोड़ खाएं फ़ास्ट फ़ूड हम भी।
तू हीर मेरी मैं तेरा रांझणा,
न प्यार होगा अपना कम भी।।

और बाकी के दिन तो तेरा,
बन के मशीन मैं पिसता रहूंगा।
सुबह जग कर शाम तलक,
तेरे फ़रमान को गिनता रहूंगा।।

आटा चावल दाल चीनी,
और बच्चों के डाईपर तलक।
तेरे गहने बिंदिया साड़ी,
झाड़ू पोछा व वाइपर तलक।।

हर चीज का जुगाड़ कर,
जब थक जाऊंगा मैं शाम को।
तो एक घण्टा जीने देना,
प्रिये, मुझको व मेरे नाम को।।

फिर मैं और मेरे शौक पर,
न तुम कभी भी ताला लगाना।
दो पैग ले कर जो आऊं तो,
बस प्यार से खाना खिलाना।।

न बंदिशे मैं तुझ पर करूँ,
न तू कोसना अपने भाग को।
बस मेरी थकान उतार देना,
सहेज कर निज अनुराग को।।

न थोपना झूठे वचन कोई,
न मानना किसी प्रतिलोम को।
बस देखना कल फिर खड़ा,
मैं रहूंगा तेरे संग अनुलोम को।।

यह जो समझा दोगे तुम तो,
तुम्हारी भी उलझनें मिट जाएगी।
उनके १२ घण्टे की चाकरी से,
१ घण्टा जीने को मिल जाएगी।।

© पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १९/१०/२०२३)

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