...

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बदलता समय
चाहा जिसे देखूं हर घड़ी,
अब उसी से नजरे चुराने लगे।
लो मंजिल बदल ली हमने,
दुजे रहो पर जाने लगे।
क्या करें कोई जब कश्ती,
धार के उल्टे दिशा में बहे।
कोशिश बीच धार से किनारो पर जाने की,
उल्टा किनारो से बीच धार में बहे।
अक्सर जो अपने सपनों को बिखरते देखा है,
ओ क्या करें जब सुहाने सपने ही सताने लगे।
जो सबके संग जीना चाह कभी,
अब उन्हीं से पीछा छुड़ाने लगे।
बैठ रात बातों में गुजार दे जो,
अब उसे अकेला पन भाने लगे।
चाहा जिसे देखूं हर घड़ी,
अब उसी से नजरे चुराने लगे।
© Savitri..