...

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पढ़ तो लोगे मुझे...!!!
पढ़ तो लोगे मुझे,
पर क्या समझ पाओगे,
समझने का दिखावा कर,
मेरी बातों का अनसुना कर जाओगे...
थी कभी खुली किताब मैं,
पर दिल कि बातें कहने से कतराती हूँ,
लफ्जों में डालकर उन्हें,
कागज़ पर उतारती हूँ...
लिखने से जो सुकून मिला,
वो कहीं मिल ना सका,
मेरी बातें सुनकर,
कागज़ ने मुझे अनसुना ना किया...
अब तो लगता है,
बेजान चीजों से बातें करु,
लोगों ने तो सिर्फ,
नासमझी ही दिखाई...
भले ही ये बेजान चीज़ें ना समझे मुझे,
मगर समझने का ढोंग तो नहीं करती,
मेरी बाते सुनकर,
मुझे अनसुना नहीं करती...
मेरी दबी ख्वाहीशें,
शाई का सहारा लेकर आज जी रही है,
अधूरे सपने मेरे,
आज पन्नों पर उमड़ रहे हैं...
शायद इसीसे खुशी है मेरी,
कि दिल की बातें कोई तो सुनता है,
कम से कम अब कैद नहीं रहती सोच मेरी,
लिखने से एक सुकून सा मिलता है...!!!

- Deepali S Jain

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