...

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ख्वाब बरस गए
आंखों आंखों में जो आहटे हुई
पल में वो अजीब सी मुस्कान
न जाने कब एक मन के ख्वाबें
दो दिलों की आवाजें बन गईं

जहां जा कर पतंग कटी
वहां क्यों गिरी नहीं?
गिरी किसी और के छद पर
जहां लिखी गई एक नई कहानी

जिन आंखों पर जुल्म हुआ
उन्ही ने शुरवाते लिख दी
उसी सफेद से कागज पर
जिसे कई लोग टूटा दिल कहने लगे

वो बारिश ही थी
और बूंदे ही थे
जो आसमान छूने वाले ख्वाबों को
निगाहों से गिराकर गए

हल्की सी हवा फिर बेहने लगी
कुछ करवटें अचानक से
छूने लगी उन अनजाने ख्यालों को
जिन्होंने तब तक वही कहानी लिख दी थी
© Sabita