...

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ऐ जिंदगी
सुन ए जिंदगी..
छत्तीस का आंकड़ा है हमारे बीच..
नदी के दो किनारे की तरह हैं हम..

हमारे बीच है तो बस ये साँसों की दीवार..
तुम उषा की लालिमा हो, मैं ढ़लती साँझ हूँ..

तुम जहां में ख़्वाहिश सभी की..
मैं तो खुद चाहत की तलाश में हूँ..

तू है कुछ सिरफिरी मनचली सी..
मुझे तलाश एक हमसफ़र की है..

तू निखरती रही नित, मैं गुंथती रही नित..
एक फासला रहा सदा हम दोनों के बीच..

नदी के किनारों की तरह तू उस पार मैं इस पार..
फिर भी ए जिंदगी हर राह हम संग संग चले..
© ऊषा 'रिमझिम'