...

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“रात के अंधेरे में”
रात के अंधेरे में
जब तुम साथ नहीं होते
अजीब सा डर
समा जाता है मुझ में

शनै शनै चलती हवा
नश्तर सा चुभती है
मेरे रोम रोम में
एक अजीब सी उदासी
भर देती है मुझ में

विचलित सी मैं
भटकती रहती हूँ
यूँही किसी उलझन में
मेरी नज़रें
जैसे ढूँढती हूँ तुझको
घर के हर कोने में

ये जुल्म है ज़ालिम तेरा
ना पास रहता है
ना रहने देता है
मन में चैन का बसेरा
कचोट रही है तेरी याद
अब तो दिल के हर कोने में

आजा, अब बहुत हुआ ये खेल
दिल मचल रहा करने को मेल
तड़फ रही हूँ मैं कुछ ऐसे
बारिश की बाट जोह रहा हो
किसान कोई सावन में ।
#ramphalkataria
© Ramphal Kataria