...

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कवायद थी मुझको.....
कवायद थी मुझको कि तेरा बनूं मैं ,मगर तुझसे शिकायत ...आज भी नही है
अरसा हुआ... उन लम्हों को गुजरे,मगर तुझसे चाहत ...आज भी वही है
आज भी उलझता हूं मैं उसी तरह से तुझमें,जिस तरह से ये उंगलिया तेरे बालों में उलझती थी
आज भी महसूस करता हूं तेरे सर को इस कांधे पे,जिस तरहा से तू आके... मुझसे गले लगती थी
फिर गले लग जाये तू कहीं से आके,मेरी तो इबादत ....आज भी यहीं है
कवायद थी मुझको कि तेरा बनूं मैं ,मगर तुझसे शिकायत ...आज भी नही है
मगर अच्छा होता जो तू मिला ही न होता
बिछड़ने का फिर सिलसिला ही न होता
क्यूं संभाला तूने जब ज़ार-ज़ार था मैं
फिर दूर क्यूं हुआ जब तेरा प्यार था मैं
एक दफा तो सोचा होता मेरे हाल-ए-दिल को
थोड़ा तो समझा होता मेरी मुश्किल को
सुकून तुझे होगा मुझसे जुदा होकर,मगर मुझको राहत ...आज भी नही है
कवायद थी मुझको कि तेरा बनूं मैं, मगर तुझसे शिकायत .....आज भी नही है