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आज कल फ़िर से तू चुप रहती है, सब ठीक तो है : तहज़ीब हाफ़ी,
तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे,
तू किसी और ही मौसम की महक लायी थी,
डर रहा था कि कहीं ज़ख्म ना भर जाएँ मेरे,
और तू मुट्ठियाँ भर - भर के नमक लायी थी,
और ही तरह की आँखें थी तेरे चेहरे पर,
तू किसी और सितारे से चमक लायी थी,

तेरी आवाज़ ही सबकुछ थी मुझे मोनसेज़ाँ,
क्या करूँ मैं कि तू बोली ही बहुत कम मुझसे,
तेरी चुप से ही ये महसूस किया था मैंने,
जीत जाएगा किसी रोज़ तेरा ग़म मुझसे,
शहर आवाज़ें लगाता था मग़र तू चुप थी,
ये ताल्लुक़ मुझे खाता था मग़र तू चुप थी,

वही अंजाम था जो इश्क़ का आगाज़ से है,
तुझको पाया भी नहीं था कि तुझे खोना था,
चली आती है यही रस्म कई सदियों से,
यही होता है यही होगा यही होना था,
पूछता रहता था तुझसे कि बता क्या दुःख है,
और मेरी आँख में आँसू भी नहीं होते थे,

मैंने अंदाज़े लगाए कि सबब क्या होगा,
पर मेरे तीर तराज़ू भी नहीं होते थे,
जिसका डर था मुझे मालूम पड़ा लोगों से,
फ़िर वो खुशबख्त़ पलट आया तेरी दुनिया में,
जिसके जाने पे मुझे तूने जगह दी दिल में,
मेरी क़िस्मत में ही जब ख़ाली जगह लिखी थी,

तुझसे शिकवा भी अगर करता तो कैसे करता,
मैं वो सब्ज़ा था जिसे रौंद दिया जाता है,
मैं वो जंगल था जिसे काट दिया जाता है,
मैं वो दर था जिसे दस्तक की कमी खलती है,
मैं वो मंज़िल था जहाँ टूटी सड़क जाती है,
मैं वो घर था जिसे आबाद नहीं करता कोई,

मैं तो वो था कि जिसे याद नहीं करता कोई,
ख़ैर इस बात को तू छोड़ बता कैसी है,
तूने चाहा था जिसे वो तेरे नज़दीक तो है,
कौन से ग़म ने तुझे चाट लिया अंदर से,
आज कल फ़िर से तू चुप रहती है,
सब ठीक तो है...!!

"तहज़ीब हाफ़ी"

© आँसू💔😥