आज कल फ़िर से तू चुप रहती है, सब ठीक तो है : तहज़ीब हाफ़ी,
तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे,
तू किसी और ही मौसम की महक लायी थी,
डर रहा था कि कहीं ज़ख्म ना भर जाएँ मेरे,
और तू मुट्ठियाँ भर - भर के नमक लायी थी,
और ही तरह की आँखें थी तेरे चेहरे पर,
तू किसी और सितारे से चमक लायी थी,
तेरी आवाज़ ही सबकुछ थी मुझे मोनसेज़ाँ,
क्या करूँ मैं कि तू बोली ही बहुत कम मुझसे,
तेरी चुप से ही ये महसूस किया था मैंने,
जीत जाएगा किसी रोज़ तेरा ग़म मुझसे,
शहर आवाज़ें लगाता था मग़र तू चुप थी,
ये ताल्लुक़ मुझे खाता था मग़र तू चुप थी,
वही अंजाम था जो इश्क़ का आगाज़ से है,
तुझको पाया भी नहीं था कि तुझे खोना था,
चली आती है...
तू किसी और ही मौसम की महक लायी थी,
डर रहा था कि कहीं ज़ख्म ना भर जाएँ मेरे,
और तू मुट्ठियाँ भर - भर के नमक लायी थी,
और ही तरह की आँखें थी तेरे चेहरे पर,
तू किसी और सितारे से चमक लायी थी,
तेरी आवाज़ ही सबकुछ थी मुझे मोनसेज़ाँ,
क्या करूँ मैं कि तू बोली ही बहुत कम मुझसे,
तेरी चुप से ही ये महसूस किया था मैंने,
जीत जाएगा किसी रोज़ तेरा ग़म मुझसे,
शहर आवाज़ें लगाता था मग़र तू चुप थी,
ये ताल्लुक़ मुझे खाता था मग़र तू चुप थी,
वही अंजाम था जो इश्क़ का आगाज़ से है,
तुझको पाया भी नहीं था कि तुझे खोना था,
चली आती है...