...

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तुम दूर खड़ी होकर
तुम दूर खड़ी होकर
देख रही हो समय की घेरे से
लौट कर कब आओगी
असमंजस की अंधेरे से

राह दरबान पड़ा है
इंतजार की पहरे से
शाम ढ़लने को है
खड़ी दोपहरे से

आंचल फैला ली है मां
बच्चें की कहने से
घुट रहा है दम
तेरी टाटा करने से

दिल बैठ गया है
न कुछ कहने से
परदेसी विचार कर लें
दिन के रहने से
(दिल के साथ खेलने से)

दिल्ली तक हिल जाएगा
मय(नसा) से निकलने से
फिर क्या है
मोहब्बत में जीने से

हलाहल पी रहा है
मजबूरी में मरने से
खुदगर्जी है
समय के ठहरने से

उम्मीद की किरण निकल पड़ी
सूरज के निकलने से
हो जाए अस्त कहीं न...