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इज़हार
#WorldPoetryDay
कुछ इज़हार तेरे और से- कुछ मेरी।
राह ना भटकु- ना चाह,
बस जिंदगी तुझसे ही तो वफा के उम्मीद ले बैठी।
जीने लगने से लगता है भय-
मरने से तो कोसों दूर खरी नजर आयु ।
व्यंग्य भी नहीं आतीं- ना व्याख्या करना ,
खुद से व्यया- ख़ुदा पे बिस्वास ।
नजरे नमस्ते के पन्ने पर छपी व्याख्या ,
कुछ अनकही- अनोखी दास्तां ।
ख़ुदा तेरे रास्तें तो सही ही होंगे -
पर कुछ मेरी भी पुकार जान ले ।
© _silent_vocal_
कुछ इज़हार तेरे और से- कुछ मेरी।
राह ना भटकु- ना चाह,
बस जिंदगी तुझसे ही तो वफा के उम्मीद ले बैठी।
जीने लगने से लगता है भय-
मरने से तो कोसों दूर खरी नजर आयु ।
व्यंग्य भी नहीं आतीं- ना व्याख्या करना ,
खुद से व्यया- ख़ुदा पे बिस्वास ।
नजरे नमस्ते के पन्ने पर छपी व्याख्या ,
कुछ अनकही- अनोखी दास्तां ।
ख़ुदा तेरे रास्तें तो सही ही होंगे -
पर कुछ मेरी भी पुकार जान ले ।
© _silent_vocal_
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