...

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मैं मैच्योर होना चाहती हूं..
मैच्योर...
हम अपनी प्रॉब्लम शेयर करना बंद कर देते हैं,
इसलिए नहीं कि अब हमें कहना नहीं है,अपने अन्दर दबाकर रखना है बल्कि इसलिए क्यूंकि वो इन्सान जिससे हम सबसे ज्यादा उम्मीद करते हैं,वो हमारी तकलीफ महसूस ही नहीं करता..और सबको लगता है कि हम मैच्योर हो गए हैं।

एक वक्त आता है कि हम शिकवा- शिकायत करना, गिले करना छोड़ देते हैं, इसलिए नहीं कि हमें उनके रवैए से फर्क पड़ना बंद हो गया है,बस अब उन्हें एहसास नहीं होने देते और उन्हें लगता है कि हम मैच्योर...