शीर्षक- इंसानियत का गिरता स्तर
© शीर्षक- इंसानियत का गिरता स्तर।
इंसान यहाँ हैवान बने हैं,
एक दूजे को लेने प्राण तुले है।
लालच, लोभ, अभिमान के मद में ,
चूर होकर मदमस्त पड़े है।
पैसा - पैसा करके यहाँ पर कितने निर्दोषों की जान ले रहे,
फिर भी दुनिया के लोग ऐसे लोगों को सम्मान दे रहे।
हर दिन खबरें आती है हर दिन एक बेटी हवस की बलि चढ़ जाती है।
स्याही सूख नहीं पाती, और दूजी खबर आ जाती है।
हर दिन बुढ़े माता- पिता को घर से निकाल दिया जाता है।
जिन्होंने जीवन दिया उन्हीं को इतना तड़फाया जाता है।
पैसों के लिए भाई, भाई की हत्या करवा देते है।
चंद शोहरत के लिए लोग इंसानियत को भुला देते है।
इंसानियत का गिरता स्तर, पता नहीं कब उठ पाएगा।
न जाने ईश्वर कब मानव को मानवता समझायेगा।
रिया दुबे