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एक साथ इतने तारे✨🌠

आसमान में एक साथ इतने तारे,
कहां से आरे कहां को जा रहे ।
कोई पूरब में, कोई पक्षिम में,
कोई उत्तर तो, कोई दक्षिण में।
कोई जुगनू जैसा, कोई तेज़ तेज़ टिमटिमा रहे।
एक साथ इतने तारे,
कहां को जा रहे ।

आज बड़े अरसे के बाद हम,
लोटे थे खुले आसमा के नीचे।
आंधी से बत्ती बिगड़ गई और,
हवा लगे हमसे रीझे।
मच्छरदानी टूट गई,
मसा खून पीने आ रहे।
एक साथ इतने तारे,
कहां को जा रहे ।

डाल चटाई छत पे हम,
लोट गए सीधे एकदम।
फिर अम्मा ने कही कहानी,
बोलो जय भोला बम–बम।
कोई पुर–पुर ,
कोई चूर–चूर।
दीमक की खाई दो–तीन खाट,
बैठे ,गिरे , बोली चटर –पटर।
एक कहे रुको हम दूसरे ला रहे।
एक साथ इतने तारे,
कहां को जा रहे ।

फिर हमने लिए 16 पुर के नाम,
कम से कम हवा तो चल जाए।
पसीने टप–टप टपक रहे,
कहीं कूकुर कहीं सियार चिल्लाए।
कल हुई थी बारिश,
तो कुछ मेंढक भी गा रहे।
एक साथ इतने तारे,
कहां को जा रहे।

अचानक देखा हमने आसमान में,
एक टूटा तारा जा रहा था।
झट से मांगा हमने मन में,
भाई लाइट देता जा जरा सा।
एक के बाद एक के बाद एक के बाद एक,
अरे कहां से आ रहे ?।
एक साथ इतने तारे,
कहा को जा रहे ।

जैसे कैरम की गोटी,
इधर–उधर बिखरती है।
सूरज की किरणे जैसे,
चारो ओर बिखरती हैं।
छोटे कुछ, कुछ बड़े चमकीले,
कुछ हल्के वाले शर्मा रहे ।
एक साथ इतने तारे,
कहा को जा रहे ।

ये देख एक ने बोला,
एक साथ इतने तारे!!
फौरन हमने जोड़ा,
कहा को जा रहे ?!
अचानक मैं उठ बैठा!
मनो धरती हिल गई।
दांत चियार के बोला,
यार आज की कविता मिल गई।
कहीं भी जा रहे हों ये,
चलो मिलके इन्हे यहाँ उतारें।
आसमान में एक साथ इतने तारे,
कलम रूपी सीधी पकड़,
मेरे पन्नो में समा रहे।।
💫✨⭐🌠🌟✴️✡️
–ध्रुव
© Dhruv