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बस थोड़ा थोड़ा.....
यूँ ही किसी रोज़, तुम्हारे पलकों पर सजूँ,
तुम्हारी आँखों में झलकुं थोड़ा थोड़ा।
मन की गहराइयों में छुपी हुई ख्वाहिशों को,
बिना कहे तुमसे बयाँ करूँ थोड़ा थोड़ा।
तेरे साथ बिताए लम्हों की मिठास आज भी है,
मधुर स्मृतियों का रसपान करूँ थोड़ा थोड़ा।
यूँ ही किसी रोज़, तुम्हारे धड़कनों में गुम,
तुम्हारी रगों में प्यार बन घुलूँ थोड़ा थोड़ा।
तेरी आवाज़ की सरगर्मी में बह जाऊँ,
खोये अहसासों को ज़ाहिर करूँ थोड़ा थोड़ा।
इस कविता में, तेरी यादों को , सपनो को बसाऊँ,
भावनाओं को तेरे लिए बयां करूँ थोड़ा थोड़ा।
© ऋत्विजा
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