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"मन का दर्पण"
© Shivani Srivastava
काश! कहीं इस दुनिया में इक ऐसा दर्पण होता....
जिस का प्रतिबिंब तन ना होकर हर किसी का मन होता।काश! कहीं इस दुनिया में..............
जान लेते सच सबका जो लोग छिपाए रहते हैं .....
कुछ किसी को कहते हैं क्यों, क्यों किसी की सहते हैं।
मेरा भी सच देखते सब झूठ का ना बंधन होता।
काश! कहीं इस दुनिया में इक ऐसा दर्पण होता...
कौन किससे क्या चाहता, किसको किसकी है ममता..
प्रेम है किसके दिल में, किस दिल में है किसकी चिन्ता।
ऐसे हर सच से वाकिफ दुनिया का जन-जन होता.....
काश कहीं इस दुनिया में इक ऐसा दर्पण होता...........
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