ग़ज़ल
बर्फ हूँ परबत बनकर ऊंचा हो जाऊँगा
पिघल गया मैं गर तो दरिया हो जाऊँगा
इक चेहरे से दूजा चेहरा हो जाऊँगा
तपते तपते इक दिन हीरा हो जाऊँगा
थोडे़ थोडे से मैं ज़ियादा हो जाऊँगा
आज इक कतरा हूँ कल दरिया हो जाऊँगा
मेरे पीठ से हो कर इक दिन दुनिया गुजरेगी
पत्थर...
पिघल गया मैं गर तो दरिया हो जाऊँगा
इक चेहरे से दूजा चेहरा हो जाऊँगा
तपते तपते इक दिन हीरा हो जाऊँगा
थोडे़ थोडे से मैं ज़ियादा हो जाऊँगा
आज इक कतरा हूँ कल दरिया हो जाऊँगा
मेरे पीठ से हो कर इक दिन दुनिया गुजरेगी
पत्थर...