...

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अंधी दौड़ की आखिरी मंजिल
तुझे पाने से सब डरते हैं,
तेरे ज़िक्र से आहें भरते हैं।
तू एक मात्र है सत्य जगत का,
हे अंधी दौड़ की आखिरी मंजिल।।

ताउम्र जो मरता दौलत पे,
प्यारी जिसको बस शोहरत है।
उसको उसकी औकात दिखाती,
हे अंधी दौड़ की आखिरी मंजिल।।

मृत्युंजय जपता था रावण जैसा दानव,
भारी पड़ गया उसपे एक सरल सा मानव।
सब चकाचौंध थे देख उसे,
हे अंधी दौड़ की आखिरी मंजिल।।

कर छल कपट तू जीत ले दो दिन का यह मेला,
संगी साथी परिवार के मध्य फिर मिलेगा खड़ा अकेला।
तू अंत नहीं आग़ाज़ है
हे अंधी दौड़ की आखिरी मंजिल।।
🪷✍️🪷
–ध्रुव

© Dhruv