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अश'आर (शायरियां)
जाने क्यूँ उनकी मुस्कुराहट का तलबग़ार रहता हूँ मैं
जबकि हर बार वो मुझे घायल कर जाती है

ग़ज़ल जैसे सँवारी हुई हो बयाज़ में
एसे सिमटी हुई आज वो चादर में

हाए! कितनी नसीबदार है ज़ुल्फ़ें तेरी
हरदम तेरे रुखसार जो चूमती है

तेरा नाम सुनकर ही, गुलाबी हो उठता हूँ
कैसे कहती मुझे फ़िर, 'तू प्यार नहीं करता'

तलब़ उट्ठी है आज शराब़ की मुझे
आ इधर कि तेरे लब़ों का लम्स लूँ
लम्स - छुअन

आह भरी उन्होंने जब पाँव पर पाँव फेरा
अच्छा है जान गए वो लुत्फ़ वस्ल का

सोचा ना था उनका लम्स भी पा सकूँगा
आज वो ही मेरी ज़ानू गर्म करते है
ज़ानू - thighs

ज़ुल्फ़े बाँध आए है वो आज वस्ल को
अंजान है पल भर में ये खुल जाएगी

सोचता हूँ दिन - रात मैं उनके बारे में
फ़िर क्यूँ लोग कहते, " ये प्यार नहीं है "

कल एक बोसा लिया था उनका मैंने
जान गया तब मैं शराब़ का स्वाद
बोसा - kiss

मासूमियत, शोख़ियां, हय़ा, सदाक़त से बना जिस्म उनका
बड़ी आसानी से वो मेरा क़त्ल कर गए 'साहिल'

तेरे ख़्वाब तेरे ख़याल और ज़िदगी क्या है
इक तेरी करुँ इबादत और ज़िदगी क्या है

क़ालीन मख़मली मेरा आज राख़ हो गया
तेरा जिस्म जो शबिस्तां में आ गया

तुझसे तुझ ही को माँगना मेरा काम हो गया
ज़ालिम तू मेरे लिए अल्लाह और राम हो गया

तेरे घर के चार फेरे क्या लगे ज़ालिम
लगा मक्का-मदीने का सफ़र तमाम हो गया

तेरा नाम ले लिया है मैंने ज़ालिम
अब उसका नाम क्यूँ लूँ भला

वो शोख़ हसीं अपने हुस्न का जाम लाया है
मेरे क़त्ल का मुकम्मल इंतिज़ाम लाया है

ज़ुबां पर उस ज़ालिम का नाम आ गया
बे मन से मंदिर जाता हूँ मैं अब

जन्नत जहन्नुम साथ देखे मैंने आज
उस ज़ालिम के दीदार जो हुए

शहर मेरा भी सुंदर हुआ करता था कभी
उन्होंनें आकर ये ताज भी छीन लिया
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