प्यारी मां
माना अनपढ़ है, पर तजुर्बा भरमार है
दिल की साफ और नाजुक है वो
उम्र ज्यादा और जान कम है
मां गुस्से में हो तो रो देती है......
मेरी कलम ,स्याही, कागज है वो
जीवन का सार नहीं अध्याय हैं वो
खुली किताब तो नहीं, बंद दरवाजे की चाबी है
काशी ना मिला, मां मिल गई
चारो धाम दिखाई दे गए उस दिन
कभी कापती, तो कभी सुदृढ आवाज है वो
दुआएं चौखट पर छोड़ गई इस कदर की
मुझे बादशाही सिखा गई और खुद फकीर बन गई
माना कुछ नहीं फिर भी सब कुछ है
क्योंकि मां मेरी हेलेडा, कनक सब कुछ है........
...
दिल की साफ और नाजुक है वो
उम्र ज्यादा और जान कम है
मां गुस्से में हो तो रो देती है......
मेरी कलम ,स्याही, कागज है वो
जीवन का सार नहीं अध्याय हैं वो
खुली किताब तो नहीं, बंद दरवाजे की चाबी है
काशी ना मिला, मां मिल गई
चारो धाम दिखाई दे गए उस दिन
कभी कापती, तो कभी सुदृढ आवाज है वो
दुआएं चौखट पर छोड़ गई इस कदर की
मुझे बादशाही सिखा गई और खुद फकीर बन गई
माना कुछ नहीं फिर भी सब कुछ है
क्योंकि मां मेरी हेलेडा, कनक सब कुछ है........
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