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प्यार मे धर्म
धर्म अधर्म कि लहरो ने दोनो किनारा डुबा दिया तुम बेबाक बन के चुप रहे हम खामोशी से खड़ा रहा। दोनो धर्म का फर्क बहत हे इतना पता तो मुझे भी था,रिश्ता नहीं बना सकते किसीने एयसा भी बताया था। अब्रू कि निलामि पर धर्म हमेशा चुप रहा,इंसानियत कि खातिर भी धर्म कहा कुच सवाल किया? आज दिल भी आजाद मे भी आजाद प्यार मे कहा आजादी हे,धर्मो धर्म कि बातो ने अब हमको लाचार बना दी हे। अब इन धर्मो मे प्यार को हम कोनसा धर्म का नाम दे,प्यार मे आजादी धर्म हे या धर्म आजाद हे प्यार मे! बस धर्म अधर्म कि लहरो ने दोनो किनारा डुबा दिया तुम बेबाक बन के चुप रहे हम खामोशी से खड़ा रहा।
© SDC