...

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में मुजरिम हूं?
मेरी उम्रकैद सज़ा है,कई सालों से शुरू हो चुकी यह प्रथा है
चुप था जब,कहते थे मलिकार,जब बोला तो नाम लापता है
गलती इतनी बड़ी है,बरपाई इतना की उगाना मीठा नीम है
में सिर झुका सच बोलता रहा,दुनिया कहती ये मुजरिम है

मुझे जेल भी नहीं मिलेगा,ना होगी कोई बेल का कारवाई
मारकाट,कैसे भी मरना है?चाहे अनाथ घर हो तुम्हारा भाई
सलाकों से बस करीब हूं,मेरा मोल जग में माटी का किम है
वो कर गए अन्याय,फिर भी,दुनिया कहती ये मुजरिम है

यह बस आखरी मुलाकात, इसके बाद तो,अब हाथ खड़े है
उम्र,तजरबा,लाज़,लिहाज नहीं,नोटों में तुमसे भी हम बड़े है
में तो मेज पर दबा एक कागज़ हूं,वो तो जगत का मुनीम है
वो कौन लोट गया?पता नहीं,दुनिया कहती यह मुजरिम है

अब तो तिनके पर वकालत,लोहार भी कहारी सीखा रहा है
जिससे करना चाहिए अपना काम,वो वर्दगर्मी दिखा रहा है
कहते सब वो हा,जालिम देह,बात,नहीं,जालिम पेट,जीब है
वो नहीं है तो क्या करें,दुनिया तो कहती रहेगी ये मुजरिम है
© ADITYA PANDEY©