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रंग मेरे कान्हा के!
रंग ढग की बात है,
जग मे स्थिर कुछ नहीं।
उत्तम वो लागे ऐसे, मन अब मेरा नहीं।
रंग उसके है ऐसी,
नीला काला, अंग जैसे,
मुस्कान जुलाब सी,
श्वेत माखन मन वाला,
पीला रंग खूब जचता,
हरा मोर पंख जैसा लहराते बाल,
आभा उसका, सूर्य तेज वाला।
वर्णन भी रंगो को कितना करे कोई,
आंख देख पाए जितना कोई!
वो दिख जाए, रंगो के होली मे,
वही रचेता उन असंख्य रंगो के!!
रंग बिरंगी है वर्णन,
मेरे माखन चोर कान्हा के,
बंद नेत्रों को भी दिख जाए
वैसा रंग रूप है,
काल कोठरी नंद बाला के!!!
© Saranya Anish Nair
जग मे स्थिर कुछ नहीं।
उत्तम वो लागे ऐसे, मन अब मेरा नहीं।
रंग उसके है ऐसी,
नीला काला, अंग जैसे,
मुस्कान जुलाब सी,
श्वेत माखन मन वाला,
पीला रंग खूब जचता,
हरा मोर पंख जैसा लहराते बाल,
आभा उसका, सूर्य तेज वाला।
वर्णन भी रंगो को कितना करे कोई,
आंख देख पाए जितना कोई!
वो दिख जाए, रंगो के होली मे,
वही रचेता उन असंख्य रंगो के!!
रंग बिरंगी है वर्णन,
मेरे माखन चोर कान्हा के,
बंद नेत्रों को भी दिख जाए
वैसा रंग रूप है,
काल कोठरी नंद बाला के!!!
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