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सखी मन आज कुछ
सखी.... मन आज कुछ भारी सा है।
वो जो मुझे मिला है ,वो मुझे मिल नही रहा है।
मिला है वो कच्चे रेशमी धागे से लिपटी ,बंधी मन्नत की तरह।
मिला है वो मुझे लाल मौली से बंधे कलश की तरह।
करने पूरी कामनाएं।
मिला है वो मुझे शीतल छांव जैसा,धूप की गर्मी से बचाने।
लेकिन मिलकर भी वो मुझे नही मिल रहा ,सो इसलिए सखी मन कुछ भारी सा है।।
समीक्षा द्विवेदी
© शब्दार्थ📝
वो जो मुझे मिला है ,वो मुझे मिल नही रहा है।
मिला है वो कच्चे रेशमी धागे से लिपटी ,बंधी मन्नत की तरह।
मिला है वो मुझे लाल मौली से बंधे कलश की तरह।
करने पूरी कामनाएं।
मिला है वो मुझे शीतल छांव जैसा,धूप की गर्मी से बचाने।
लेकिन मिलकर भी वो मुझे नही मिल रहा ,सो इसलिए सखी मन कुछ भारी सा है।।
समीक्षा द्विवेदी
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