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आईना_मुझे_वक़्त_का_इंतिहा_सुना_रहा
ज़िंदगी का आईना फ़ल्सफ़ा सुना रहा है
मुझे मेरे ही किस्सों का अना सुना रहा है
यूं ही नहीं भांपता ये आईना सबके चेहरे
आहिस्ता आहिस्ता ये माजरा सुना रहा है

तमाम बातों पे तिरछी नज़र बख़ुबी रखी गई
ये आईना ख़ामोश गुफ्तगू का क्या सुना रहा है
सुना है चेहरा देखकर चेहरे की रंगत समेट ली
यूं ही नहीं आज हू-ब-हू ताना-बाना सुना रहा है

मुझे समझने चलें ये टूटकर बिखरने वाले शीशे
दुनिया दारी की ख़बरों को मुझे बड़ा सुना रहा है
आईने से आईने की फितरती को अब क्या ही पूंछें
सुना है रुठे हुए चेहरों का ये फ़ल्सफ़ा सुना रहा है

मेरा ये आईना आज हर किसी का राज़दार है
नए चेहरों को तसल्लियों का पता सुना रहा है
धीरे-धीरे सबके रंगों को अपने अंदर समेटे हुए
ये आईना रू-ब-रू होकर फ़ैसला सुना रहा है

तमाम शिकायतों का हिसाब-किताब रखें हुए
ख़ामोशी से ज़िंदगी का हर हादसा सुना रहा है
निगाहें मिलाकर हाल-ए-हालातों को ऐसे पूंछें
ये आईना मुझे वक़्त का इक इंतिहा सुना रहा है

© Ritu Yadav