...

1 views

मैं थोड़ा हि खाता हूँ
करते हैं बदनाम मुझे सब

मैं थोड़ा ही खाता हूं l

( सुनिए क्या खाता हूं)

सुबह सवेरे आंखें खोलूं

बिस्तर पर से ही मैं बोलूं l

गर्म चाय की एक प्याली

पत्नीजी से मंगवाता हूं

लोटा भर चाय के संग

पापे दस-बारह खाता हूं।

करते हैं बदनाम मुझे सब

मैं थोड़ा ही खाता हूं।

शौचालय से वापस आकर

मार पालथी खूब डटाकर

बस चौदह - पंद्रह पूड़ी ही

नास्ते में मैं उड़ाता हूं।

करते हैं बदनाम मुझे सब

मैं थोड़ा ही खाता हूं।

भोजन भी हल्का-फुल्का ही

सवा सेर बस चावल दे दो

रोटी बस देना दस साथ

गाढ़ी दाल पनीर की सब्जी

मिल जाए फिर क्या हो बात

दही अचार पापड़ और चटनी

भी मैं साथ मंगाता हूं।

करते हैं बदनाम मुझे सब

मैं थोड़ा ही खाता हूं।

साल-दो-साल में कभी

गांव यदि मैं जाता हूं।

दूर कहीं भी भोज हो रहा हो

अवश्य ....मैं जाता हूं l

करते हैं बदनाम मुझे सब

मैं थोड़ा ही खाता हूं।

( अब मेरी व्यथा भी सुन लें। )

बात हंसी की है बेशक्

पर दुख भी काफी मुझको यार

खा-खाकर मैं हो गया मोटा

वजन हो गया क्विंटल चार।

इस कारण मुझको भैया

पछताना भी पड़ता है,

गिर जाऊं तो मुझे उठाने

क्रेन मंगाना पड़ता है।

आप न भैया यूं पछताना

पेट से ज्यादा कभी न खाना।

मेहनत करना और ज़िम जाना

अपनी सेहत आप बनाना

बात हमारी गांठ बांध लो

आपसे जो बतलाता हूं।

(😊😊 मैं तो सुधरुंगा नहीं। ठांस-ठांसकर खाता रहूंगा। ... और गाता रहूंगा। )
क्या,....🤓🤓🤓🤓🤓

करते हैं बदनाम मुझे सब,
मैं थोड़ा ही खाता हूं।
हंसते रहें, मुस्कुराते रहो।

-kaushal kishor Singh(Kaushal)
© Kaushal