...

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'ये जिंदगी' और 'शुन्य का सफ़र'
हां सच है, ये जिंदगी जादुई है...
मगर बात महज़ इतनी...
मुझे उस जादु मे भी रस नहीं।

हां प्रेम रंग मे रंग के,
रंगहीन मैं..
थोड़ा रंगीन मैं भी हो जाती हु
कभी-कभी
अचल मैं
थोड़ी चंचल सी हो जाती हुं।
किरदार क्या..
अभिनेता कौन...
बस यूँही जिंदगी की राह पर चली जाती हु मैं।
प्रतिक्षा है थम जाने की
मगर जान है
अभी वक्त आया नहीं...
झूठ नहीं,
मगर सच भी नहीं
गहरी नहीं
छिछली ही सही
उपरी ही सही...
अतल सागर की मैं
सागर-अतल मे नहीं मैं
लहरों मे ही ज़रा
जी लेती हु मैं भी।
जिंदगी है,
जीने के सिवाए चारा भी नहीं
इसीलिए...
चलती हूं चलने के लिए मैं
प्रतिक्षा तो थमने की है।
करतब, ये हरकत
झूठे भी नहीं
मगर हकीकत भी इनमे कुछ नहीं।
आकाश ही तो आकाश को समझे
आकाश कहा धरती को अपनी पीड़ा बताए....
वह धरती भी तो उसी आकाश मे समाए....है..
और फिर वही धरती
आकाश से पूछती है
तुम कौन हो!
तुम्हारी हस्ती क्या?
अब क्या कहे उस ठोस धरा को
जिसने उसकी
ठोसता को ही नहीं
उसकी तरलता को भी धारण किया हुआ है।
किंतु ना ठोस
और ना ही तरल वो....
असीम तरंग को समेटे खुदमें
महज़ शून्य वो।
शुन्य की शून्य से ही आस है
शुन्य को शून्य की ही प्रतिक्षा है!


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#thedivinelove
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#divinelove

D💚L