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कितना लड़े कोई अंतर्मन से .....
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कितना लड़े कोई अपने अंतर्मन से
हां या ना के इस कठोर अंतर्द्वंद से

मुठ्ठियों में कोई इच्छा सुरक्षित नहीं है
सब रेखाओं का अपना-अपना मन है

कैसे मिटा सकेंगे हम इन रेखाओं को
ये तो ईश्वर की रचना का घटनाक्रम है

अपरिचित यहां कोई नहीं होता किसी से
ये तो पिछले जन्मों का कोई सुंदर बंधन है !!
(स्वरचित )....!